تضاریس الحنین فی ودیان الکلمات – ٧

سید کاظم القریشی : أدلف بسرعه فی بیت أبی جاسم ، أبو جاسم.. أبوجاسم!. تطلُّ علیَّ لیلى. تبستم. أبادلها الإبتسامه. یهفو قلبی إلیها. بات یعلو ویسفل فی صدری، لعنه الله على الشیطان الرجیم. یوسوسنی أن أضمها بین ذراعیَّ. عندما أتمعّن فی محیّاها أنسى حتى نفسی. أود ان اراقصها، أن أغنی لها، أن …. – تبأ! […]

سید کاظم القریشی : أدلف بسرعه فی بیت أبی جاسم ، أبو جاسم.. أبوجاسم!. تطلُّ علیَّ لیلى. تبستم. أبادلها الإبتسامه. یهفو قلبی إلیها. بات یعلو ویسفل فی صدری، لعنه الله على الشیطان الرجیم. یوسوسنی أن أضمها بین ذراعیَّ. عندما أتمعّن فی محیّاها أنسى حتى نفسی. أود ان اراقصها، أن أغنی لها، أن ….
– تبأ! ألم أحذرک أن لا تقترب من لیلى
– هربت من البیت
– وما دخلی أنا بأمورکم العائلیه
– آرید المبیت عندکم
أرنو إلى لیلى. لا أدری لمَ اخترتُ بیت أبی جاسم بالتحدید.
– أدخلی یا فتاه قبل أن یفترسکِ بعینیه الوقحتین
یحملق فیّ. یطلّ بنصف جسده فی الشارع. یلتفت نحوی.
– یبدو أنک ستبقى عندنا. لم یأت أحد لیأخذک إلى البیت.
لم أنبس ببنت شفه. کنت أفکّر فی آن واحد بأبی الذی یبحث عنی فی بیوت عمومتی، ولیلى التی لم أرها منذ أن تشاجرت مع جاسم.
– أحذرک أن لا تکلّم شقیقتی
– لمَ لا أکلمها؟!
– لأنّ هذا ما أقول
– وإذا کلمتها؟!
یستشیط غضباً وینظر لأصدقاءه. یهز رأسه. یهاجموننی. أسقط أرضاً. أتلقى الرکلات وضربات الکف من کل الجهات. أتقیها بکلتا یدیّ
– کفى!
صرخ جاسم. ینقشعون عنی وأنا ممددٌ على الأرض. لا استطیع الوقوف على قدمی. وجه جاسم یقترب منی. یمسک أذنی
– هذا ما افعله إذا اقتربت منها
– لا أدری لماذا لم یذهب إلى بیت عمه أو عماته أو أخواله.
یتمتم أبو جاسم
یضع فراشی فی غرفه المضیف. یحملق فیّ قبل أن یطفئ الأضواء.
– نم وعلیک ان لا تحلم بلیلى
أهز رأسی. اسحب البطانیه. وأرقد تحتها
– کن مؤدبا حتى فی کوابیسک. لاتصرخ. ولا تتبوّل على الفراش کی لا أضطر لحرقه وحرق أباک
یخرج. یعم الظلام. لا ارى شیئاً. أحاول أن أنسى. أن أنسى کل شی. لکنّ وجوههم تحوم حول رأسی. حته.. دهراب.. دعیر.. المعلم.. أبی. یغشینی النعاس. أحاول أن لا أفکر بأی شیء. استسلم للنوم. شخص یهزنی. أفتح عینیّ. لم أر شیئا. الظلام الدامس یفرض سطوته على الغرفه. اتوجس خیفه. أتحرى من حولی. اتلمس فی الظلام. لمستُ ضفیره طویله. تکهربت یدی. اسحبها.
– هذه أنا؛ لیلى!
هل أرى حلما، أفرک عینیّ. أسمع صوت ضحکتها.
– هل لا زلت على وعدک ؟
– قطعته عندما کنا فی الصف الأول
– أنا أتکلم عن وعدک ولا أتکلم عن دراستک
– اقصد بأننی عندما وعدتک کنت طفلاً
– والآن؟!
– لا أزال طفلا
– لکن تزوج أبی مع أمی وهو فی عمرک
لم أرد علیها. لا استطیع التفکیر. کنت أشعر بإعیاء من الکابوس الذی رأیته قبل قلیل
– وأبوک کم کان عمره عندما تزوج مع أمک؟
– لا أعرف لأنی لم أحضر حفل زواجهما
تضحک. أضحک أنا أیضا.
– ما أتى بک إلى هنا فی هذا الوقت؟!
– الوعد الذی قطعته لی
– تباً، لم یکن إلا لعبه فی زمن الطفوله
– سنکبر قریبا
– حسنا! سنکبر؛ لکن لا تتقبل أمی الأمر ولا أمک
– إذا لم یتقبلا؛ سوف نهرب
– لا.. سنعکر صداقه والدینا
– لم یکونا صدیقین.. حتی لیوم واحد
– بالعکس إنهم أصدقاء. انا شاهدتهم عده مرات وهم یضمان بعضهم بعضا ویتبادلان القُبَل
– هذا لا یدل على الصداقه أبداً.. فأمی لم تود عمتی زنوب قط لکنها تضمها عندما یتقابلن وتقبلها کأنما تقبل طفلا ودودا وتقسم لها بأنها تحبها أکثر من أطفالها
– لا أحد یقبل بزواجنا
– نهرب!
– کیف نهرب وإلى این؟
– نهرب من القریه لیلاً ونذهب إلى المدینه
– الأهواز؟!
– نعم
– لکننا لم نذهب لها من قبل
– لنجرب الحیاه خارج هذه القریه اللعینه. سعد، أنا تعبت من صوت الأبقار ومن رائحه الروث ونهیق الحمیر.. هیا لنغامر. تمسک یدی وتساعدنی على النهوض.

لم نرَ ضوضاء أو حرکه خارج القریه. نسلک الطریق الرئیسى. نجری حتى نبتعد من القریه. کنا نقهقه طوال الطریق. نحن أحرار. لا أدری کم ابتعدنا من القریه حتى توقفت أمامنا سیاره تویوتا.
السائق العجوز ینظر إلینا من خلال زجاج الباب.
– انا ذاهب إلى الأهواز وأشعر بالنعاس هل تودان مرافقتی فی الطریق؟
نرکب. ینظر إلینا. یبستم. یرتب شماغه.
– لا اظنکم أخوین
لم نقل شیئا. ینظر إلینا مره أخرى
– لماذا لا تنطقا؟! أنا اقللتکما کی لا أشعر بالنعاس لکن بصمتکما ستجلبان لی النعاس!
– لا ندری عماذا نتکلم
– عن أی شی یروق لکما؛ تکلما فقط..
– نرید الذهاب إلى المدینه
– هل ذهبتما من قبل؟
– لم نذهب، لکن تعبنا من القریه. کل شیء فیها أصبح مکررا بالنسبه إلینا. صیاح الدیکه فی الفجر، نهیق الحمیر، سرح الأبقار والأغنام.
– لکن فی القریه أشیاء ممتعه کثیره. مثلا لعبه “عظیم الضاع”. “أم حچیم،” “هویشه”، حبه جِلی، وغیرها، خاصه فی اللیالی المقمره إذ یحلو السمر فیها
– هذه الأشیاء أیضا أصبحت ممله ولا تجلب لنا المرح
– أنتم یافعون فلماذا لا تذهبا لکبار السن فی القریه لتسمعا قصصهم الشیقه والجمیله ؟
– الراوی الوحید فی القریه هو العجوز حسون الأعور. کان فی شبابه رجلا وسیما. وقد وجدوه ذات لیله فی بیت حجی مرداو مع ابنتهم حسیبه. ضربه حجی مرداو بالسوط لدى هروبه وأتلف عینه. حسیبه لم یشاهدها أحد من بعد تلک اللیله. هرب حسون للهور ولم یرجع للقریه. نُقِل أنه دخل فی عصابه سارقی الأبقار والجوامیس. ورجع للقریه بعد ما أصبح عجوزا. کان یجلس کل یوم تحت شجره السدر بالقرب من باب بیته القدیم وینظر إلى الماره و یسألهم عن حسیبه. لا یجیبه أحد.
– هل مازال حیّا؟!
سأل السائق العجوز
– لا نعرف لأننا مُنعنا من الذهاب صوب بیته. بالأحرى نحن لا نتجرأ أن نقترب من بیته حتى لو لم یمنعنا أحد. یقال أن فی شبابه قُبِضَ علیه حینما کان یسرق المواشی. حدث هذا الأمر أبان الحرب العالمیه وحُکِمَ علیه بالإعدام؛ فأنتسب للعسکر وشارک فی الحرب العالمیه الثانیه حینما اجتاح المتفقین البلاد. انهزم الجیش وتلاشى، لکن بقى حسون الأعور یحارب وحیداً حتى قتل جماعه کثیره من الإنجلیز. هناک شائعه تجری على افواه المعمّرین؛ بأنهم وعند مرورهم من قرب بیته یسمعون أصواتا تتکلم الإنجلیزیه. عندها یصرخ حسون بصوت عال:
– لا أخاف منکم حتى لو کنتم الوف من المقاتلین. لا أخاف منکم ولا من تشرتشیل. جدی شیخ سلمان الکعبی قتل ابوطوق؛ انا ایضا سأفعلها مجددا.
سکتنا. نظرت لیلى إلى العجوز .
– انت یا حاج کلمنا عن نفسک
نظر إلینا العجوز من خلال المرآه الأمامیه
– هل تحبون أن تسمعوا قصتی؟
– ولمَ لا؟
– لکن لا أحد یود أن یسمعها
– نحن نود
– حسنا، أنا اسمی عبود الدفان، مهنتی دفن الموتى. کثیر من الناس لا یحبون أن أحدثهم عن الموت. زوجتی تقول لی أن رائحتی تشبه رائحه الجنائز المتعفنه. فی البیت لا أحد یسألنی کم من الأموات قمت بدفنهم. او ماذا جرى فی دفن فلان من الاموات.. حدث أننی بقیت حارسا فی بعض اللیالی على قبر میت من الاموات کی لا یُسرق.
– وهل یملک المیت شیئا حتى یُسرق منه؟!
– تسرق أعضاء المیت کی یصنعوا السحر بها
– اللعنه! ام شبیب العمیاء کانت فی أوان شبابها ساحره.
یقولون عندما ترکها عشیقها وهرب إلى العراق وهی حبلى منه قررت أن تنتقم منه. فصنعت له سحرا فأصبح مجنونا. لدى رجوعه إلى القریه قد أمسى وجهه یشبه بقره أبی حمدان من کثره اللکمات الذی کان یوجهها لنفسه.
– انظرا .. ظهرت أضواء المدینه. سنصل بعد بضع دقائق. ننظر لبعضنا البعض. تبتسم فی وجهی. اأعض شفتی
– عیب الضحک بحضور شخص غریب
تقطب لیلى حاجبیها.
– لماذا تقطبی حاجبیک، فأنا جدک؟!
– زوجتی لا تتکلم دون أذنی.
یضحک العجوز. لم یقل شیئا قط. لدى ترجلنا من السیاره خاطبنا العجوز
– هل لدیکم مکان لتقضوا لیلتکم فیه؟!
– لا
– تعالا معی إلى بیتی
– لا.. نخاف منک أن تقوم بدفننا
یضحک العجوز. یرتب شماغه. ینظر إلینا
– اسمعانی جیدا، أذهبا إلى سوق عبدالحمید وإسألا عن مقهى حسن آقا. قولا له أرسلنا حجی زهوری
نشکره. نذهب إلى العنوان. لا نعرف ای شیء. نعترض طریق عابر سبیل کل لحظه ونساله عن العنوان الذی وصفه لنا العجوز. عند الصباح وصلنا إلى قهوه حسن آقا. ننتظر حتى یفتح المحل. یأتی رجل سمین. یفتح المقهى
اذهب نحوه
– حسن آقا؟!
ینظر إلیّ ثم إلى لیلى. یصیح بصوت عال یا فتاح یا رزاق افتح علینا.. ینظر إلینا مره أخرى
– من یسأل عن حسن آقا؟!
اتقدم نحوه. أمسک یده. لا استطیع الوقوف على قدمیّ من الإعیاء. لا استطیع أن ابقی عینی مفتوحه من شده النعاس
– حجی زهوری أرسلنی
یقف . یسحب یده من یدی.
– حسنا عندی غرفه فی الخلف… وهل تملکا نقودا للعیش فی المدینه؟!
– لا نملک حتى فلسا واحدا
– أذهبا واسترحا ثم تعالا الظهر حتى تاکلا شیئا. ومن الغد ستعمل عندی یا ولد
تضحک وتبکی لیلى فی آن واحد نذهب إلى الغرفه کی ننام.

 

*١۶ تموز / یولیو ٢٠٢٣